آئینہ کے رکن بنیں ؞؞؞؞؞؞؞ اپنی تخلیقات ہمیں ارسال کریں ؞؞؞؞؞s؞؞s؞؞ ٓآئینہ میں اشتہارات دینے کے لئے رابطہ کریں ؞؞؞؞؞؞؞؞؞ اس بلاگ میں شامل مشمولات کے حوالہ سے شائع کی جاسکتی ہیں۔

Wednesday 3 August 2016

पौदों में रस्म-ए-शादी

ऐस.ऐम. नातिक़ कादरी

पौदों की दुनिया बहुत अजीब-ओ-ग़रीब है, साख़त के एतबार से उनके मुख़्तलिफ़ इक़साम,उनका उगना और नशओ नुमा पाना, उनके अंदर पाए जाने वाली मुख़्तलिफ़ आदात-ओ-अत्वार ,क्विव-ए-दिफ़ा, निकाली की आदत , राहत-ओ-तकलीफ़ से मुतास्सिर होना, कभी कभी अपने दिफ़ा के वास्ते जानवरों पर हमला-आवर होजाना ऐसी हैरत-अंगेज़ हक़ीक़तें हैं कि उनका मुताला बड़ा दिलचस्प और काबिल-ए-ग़ौर है।क़ुदरत ने आम तौर से हैवानात सेनबातात को कमज़ोर बनाया है मगर पौदों की अफ़्ज़ाइश-ए-नसल के लिए क़ुदरत काइंतिज़ाम बड़ा ही हैरानकुन और जाज़िब-ए-नज़र है। इन्सान और हैवान की बक़ा और आबादी में इज़ाफ़ा के लिए नर और माद्दा का मिलाप ज़रूरी अमल है, इन्सानी दुनिया में इस रस्म-ए-तिब्बी को रस्म-ए-शादी से ताबीर करते हैं । क़ुदरत ने पौदों की आबादी में इज़ाफ़ा और इस की नसलों को फ़रोग़ देने के लिए पौदों के अंदर भी बाहमी शादयात काबड़ा लतीफ़ और अनोखा इंतिज़ाम कर रखাा है, साईंस और इल्म-ए-नबातात की ज़बान में इस ख़ुसूसी अमल को पालीनीशन(pollination) कहते हैं और इस का इन्हिसार फूलों पर है
जिस तरह इन्सानी दुनिया में शादी की एक उम्र तिब्बी है इसी तरह पौदों में भयायक ख़ास मुद्दत के बाद फूल का आना उनके अज़दवाजी ज़िंदगी का आग़ाज़ है ,इन ही फूलों में नर और माद्दा फूल होते हैं ।बाअज़ पौदों में ये नर और माद्दा फूल एक साथ होते हैं यानी एक ही फूल के कटोरे में दोनों किस्म के जिन्स मौजूद होते हैं , ऐसे फूलों को मुकम्मल pletecom flower फूल कहते हैं । बाअज़ पौदों में नर और माद्दा फूल एक ही पौदे में होते हुए भीमुख़्तलिफ़ जगह पर उगे रहते हैं । मकई के पौदों में इस के बालाई हिस्सा पर जो धान की बाली की शक्ल का फूल होता है वो नर फूल कहलाता है और पौदों के तने में पतियों की गाँठ के क़रीब मकई के बाल की मोच निकलती है ये माद्दा फूल है।
(pollination) पालीनीशन के अमल को समझने के लिए नर और माद्दा फूल के मुख़्तलिफ़हिस्सों को समझना ज़रूरी है ।नर फूल का घुंडीदार बालाई हिस्सा anther )) अनथर कहलाता है ,ये एक पतली सी छड़ी (filament) फैला मिनट के ऊपर रहता है । नर फूल जब अपने सन्-ए-बलूग़त को पहुंच जाता है तो बालाई हिस्सा पर मौजूद अनथर (anther) में बारीक बुरादे क़वी हो जाते हैं जिनको इल्म-ए-हयात में पोलन ग्रीन्स (pollen grains) कहते हैं यही बारीक ज़र्रात अपने अंदर क्विव-ए-तौलीद रखते हैं और वक़्त-ए-मुक़र्ररा पर माद्दा फूल केबालाई हिस्सा असटग मा (stigma) पर क़ुदरत के मुख़्तलिफ़ कारिंदों की मदद से पहुंच जाते हैं और असटग मा (stigma) से निकलने वाली लसदार सी्याल की वजह से ये पालन ग्रीन्स इस पर चिपक जाते हैं और इस तरह जिन्सी अमल(fertilisation ) शुरू होता है और बीज और फल की बुनियाद पड़ जाती है और देखते देखते फूल मुरझाने लगते हैं और उन की जगह नन्हा सा फल नज़र आने लगता है और एक मुअय्यना मुद्दत के बाद वो भी बड़ा हो जाता हैनर को माद्दा फूल से क़रीब करने में क़ुदरत का बड़ा अनोखा ,हैरत-अंगेज़ और दिलचस्पइंतिज़ाम है जिसको देखकर क़ुदरत की सुनाई का गरवीदा होजाना पड़ता है, ना कोई शोर ना हंगामा, ना बाजा ना गाजा, ना सहरा ना मुकना ,ना बर ना बरात, जैसा कि इन्सानी समाज में आजकल हमने बिना रक्ख्াा है।हमारे यहां ज़न-ओ-शो को बाहम मिलाने का बड़ा पुरवक़ार तरीक़ा है लेकिन मज़हब से दूरी ने इस को एक बहुत बड़ा मसला बना दिया है।
मंसूब ही तै नहीं हो पाती जब तक कि लड़के और लड़की के वालदैन की नाक में दम ना आजाए। खासतौर पर लड़के वालों की तरफ़ से फ़रमाइशों और अनोखी शराइत ने लड़की वालों की जान आफ़त में डाल रक्ख्াी है। ये क्या सितम है कि कल तक जिन बच्चीयों की चहल पहल, उनकी तोतली ज़बान अच्छ्াी भली मालूम होती थी आज जवान हो कर घर को रौनक बख़श रही हैं तो वालदैन के दिन का चयन और रातों की नींद हराम होती महसूस हो रही है।शरीफ़ और नादार तबक़ा के सामने लड़कीयों की शादी बहुत बड़ा मसला बन कर रह गई है
आजकल इन्सानी शादी में माल-ओ-दौलत की हवस ,नुमाइश का शौक़ और ज़िंदगी के बामक़सद उसूलों से इन्हिराफ़ साफ़ साफ़ नज़र आता है, उनके मुक़ाबला में मासूम, ख़ामोशऔर गूँगे पौदों की रस्म-ए-शादी कहीं ज़्यादा साफ़ सुथरी और भली मालूम होने लगी है ।माफ़ कीजीएगा इन बातों का तज़किरा यहां बेजोड़ सा मालूम हो रहा होगा लेकिन इन्सानी दुनिया के एक फ़र्द होने के नाते क़लम कुछ ना कुछ तल्ख़ हक़ीक़तों की तरफ़ इशारा कर ही यता है। आईए पौदों की शादी में चलीं, पाली नेशन (pollination ( यानी नर और माद्दा फूलों कोयकजा करने के लिए क़ुदरत ने हुआ, पानी, पतिंगे , भंवरे , मुख़्तलिफ़ किस्म की मक्खियां और तितलीयों से कारिंदों का काम लिया है, ये सारे कारिंदे नर फूल के पालन ग्रीन्स(pollengrains ( को माद्दा फूल के एक मख़सूस उज़ूstigma ) ) तक पहुंचाने का काम करते हैं। फूलों पर मंडलाती तितलियाँ और गुनगुनाते भंवरे सिर्फ़ रौनक-ए-चमन की ख़ातिरनहीं बल्कि क़ुदरत ने ये इंतिज़ाम एक और बहुत ही आला मक़सद के लिए किया है।पतंगों और तितलीयों के पैर और परों पर चिपके पालन ग्रीन्सpollengrains))यानी नर फूल के बारीक ज़र्रात,माद्दा फूल के मख़सूस उज़ू (Stigma) पर जा पड़ते हैं जहां से जिन्सी अमल की शुरूआत होती है और अमल-ए-तौलीद की तकमील के बाद बीज और फल की बुनियाद पड़ती है , धान और गेहूँ की बालियां हूँ, आम के रसीले फल हूँ या अंगूर के सरमस्त ख़ोशे, हर तरह के फल, मेवा-जात सब के सब अपने पैदा होने में इसी पाली नेशन(pollination) के अमल के मरहून-ए-मिन्नत हैं ।फूलों से उठती ख़ुशबू जहां आपके दिल-ओ-दिमाग़ को तरोताज़गी पहुंचाती है वहीं मक्खीयों, पतंगों को अपनी जानिब खींचने में बहुत मुआविन है ।बाअज़ पतंगों की ख़ुराक फूलों का रस यानी यही नीकटर(nectar) है । ये पतिंगे अपना ख़ुराक लेने के लिए मुख़्तलिफ़ फूलों पर बैठते रहते हैं और क़ुदरत उनके रिज़्क़ की फ़राहमीके साथ साथ उनके ज़रीया पाली नेशन (Pollinationके अमल को बरुए कारलाती है।हुआ के लतीफ़ झोंकों के साथ नर फूल के पालन ग्रीन्स pollengrains) ) माद्दा फूल पर जा गिरते हैं । इस का मुशाहिदा मकई के पौदों के साथ बहुत आसानी से किया जा सकता है । आप एक मकई के पौदे को जुंबिश दें ,उस के बालाईहिस्सा पर अगे हुए धान से बारीक ज़र्रात झड़ने लगेंगे। यही पालन ग्रीन्स(pollengrains ( हैं जो मकई के मुलाइम रेशमी बालों के गछु्ुए ( मोच ) पर गिरने से मकई के बाल में दाने पड़ने शुरू हो जाते हैं। अगर कोई इस माद्दा फूल ,मकई के बाल के मुँह पर एक प्लास्टिक की थैली बांध दे और पालन ग्रीन्स(pollengrains ( को मकई के बाल पर ना गिरने दिया जाये तो सब मकई के पौदों में तो दाने मिलेंगे लेकिन इस मख़सूस पौदे में मकई के बाल के दाने बिलकुल नज़र नहीं आएं गे। पानी और हुआ तो खासतौर से नर फूल के पालन ग्रीन्स(pollengrains ( को माद्दा फूल तक पहुंचाते हैं , उस के इलावा कीड़े , पतिंगे , मक्खियां और भंवरे भी नर फूल से निकलने वाली बू के ऐसे मतवाले होते हैं कि इन फूलों पर उनका बैठना नागुज़ीर होता है और इस तरह उनके पैरों और परों पर की मदद से पालन ग्रीन्स(pollengrains ( माद्दा फूल पर पहुंच जाते हैं और अमल-ए-तौलीद का सिलसिला चलता रहता है ।आपने कभी धोके से शादी होते नहीं सुना होगा ।आईए आपको अल्जीरिया के एक पौदे Mirrororchid जिस का हयातयाती नाम (botanical name) अलिफ़-ओ-फर्स् असपीकोलम (ophrys speculam) है का बहुत कामयाब धोके का हाल सुनाता हूँ ।इस का फूल क़ुदरत की अता करदा बेमिसाल क्विव-ए-निकाली की वजह से ख़ुद को एक उड़ती हुईमख़सूस नसल की माद्दा मक्ख्াी की तरह बन कर पेश करता है जिसको देखकर उसीनसल का नर उस की तरफ़ माइल होता हैनबातात के माहिरों का कहना है कि इस फूल की पंखुड़ी के रंगों का इमतिज़ाज, उस का भूरा और चमकीला नीला रंग और इस की बनावट नबातात की दुनिया में बहुत मिसाली है और सच-मुच एक उड़ती हुई मक्ख्াी नज़र आता है , क़ुदरत का ये निज़ाम भी कितना अजीब-ओ-ग़रीब है कि माद्दा मक्ख्াी इन फूलों पर कभी नहीं बैठती बल्कि दूसरे इक़साम के फूलों से अपना रिज़्क़ हासिल करती है।इस माद्दा मक्ख्াी का नर चंद रोज़ पहले निकल आ ताहे और अपनी माद्दा की तलाश में सरगर्दां रहता है और धोके से इस (फूल) को अपनी माद्दासमझ कर इस पर बैठ जाता है,चूँकि उस की जिन्सी भूक का तदारुक नहीं हविपाता इस लिए ये एक फूल से दूसरे फूल पर उड़ता और बैठता रहता है लेकिन इस की इस ख़्वाहिश-ए-वस्ल और अहमक़ाना हरकत से नर फूल के पालन ग्रीन्स(pollengrains ( माद्दा फूल पर पहुंच जाते हैं और बीज और फल की बुनियाद पड़ जाती है । ये बात भी बहुत दिलचस्प औरग़ौर करने की है कि जब माद्दा मक्ख्াी आ निकलती है तो ये नर कभी इन फूलों(नक़ली माद्दा)की तरफ़ राग़िब नहीं होता ।

पौदों की अफ़्ज़ाइश-ए-नसल के लिए क़ुदरत का ये अमल-ए-मख़सूस , पालीनीशन (pollination ( या रस्म-ए-शादी कहलाता है । ये पौदों की अच्छ्াी से अच्छ्াी इक़सामपैदा करने में बहुत मुआविन है। इस काम से लगे माहिरीन(plant- breeders )ने मुख़्तलिफ़नरफोल के पालन ग्रीन्स (pollengrains ( को माद्दा फूल पर तजुर्बा कर के बहुत ही फ़ायदामंद नसलें ती्यार की हैं और इसी तकनीक की मदद से धान, गेहूँ,गुना और मुख़्तलिफ़ किस्म के फलों की ज़्यादा उपज देने वाली किस्में किसानों के पास पहुंच रही हैं। इन किस्मों की ईजादात ने ज़राअत की दुनिया में सबज़ इन्क़िलाब के सुनहरे ख़ाब की ताबीर को हक़ीक़त के बहुत क़रीब कर दिया है

0 comments:

Post a Comment

خوش خبری